" *पद और प्रतिष्ठा की परछाई: सामाजिक असमानता और विचारों की अनदेखी
वर्तमान भारतीय समाज में सामाजिक असमानता और रूढ़िवादिता एक गहरी समस्या के रूप में विद्यमान है, जो विकास और प्रगति के रास्ते में बड़ी बाधा बनी हुई है। भले ही हम तकनीकी और आर्थिक मोर्चे पर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हों, लेकिन सामाजिक ताने-बाने में जातिवाद, पंथवाद, और अंधविश्वास जैसी समस्याएं अब भी जड़ें जमाए हुए हैं।
इन समस्याओं का मुख्य कारण सामाजिक भेदभाव और व्यक्तियों की सामाजिक स्थिति के आधार पर होने वाला व्यवहार है। जब कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति, उच्च पदाधिकारी या प्रसिद्ध व्यक्तित्व कुछ कहता या लिखता है, तो उसे समाज में व्यापक सराहना मिलती है, और उसकी बात को गंभीरता से लिया जाता है। इसके विपरीत, यदि कोई सामान्य व्यक्ति, चाहे वह कितनी भी सही और महत्वपूर्ण बात क्यों न कहे, तो उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह सामाजिक असमानता हमारे समाज की गहरी जड़ें दिखाती है, जहाँ *व्यक्ति की अहमियत उसके विचारों से नहीं, बल्कि उसके सामाजिक और आर्थिक स्थिति से निर्धारित होती है।*
यह स्थिति यह दर्शाती है कि हमारा समाज अभी भी 'पद और प्रतिष्ठा' के चश्मे से ही लोगों को देखता है। आमतौर पर यह देखा गया है कि उच्च पद वाले व्यक्तियों की बातें सोशल मीडिया या अन्य प्लेटफार्म पर बड़े पैमाने पर सराही जाती हैं, उनके विचारों को लाइक, शेयर और टिप्पणियों से समर्थन मिलता है। वहीं, यदि वही बातें *किसी साधारण व्यक्ति द्वारा व्यक्त की जाएं, तो उन्हें उतना समर्थन नहीं मिलता।* यह असमानता न केवल सोशल मीडिया पर, बल्कि वास्तविक जीवन के हर क्षेत्र में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
इस प्रवृत्ति का सीधा असर सामाजिक समरसता पर पड़ता है। यह धारणा बनती है कि *समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसकी योग्यता, विचारों और कार्यों से नहीं, बल्कि उसके पद और स्थिति से तय होती है।* ऐसे में, निचले तबके के लोग या छोटे पद पर कार्यरत व्यक्ति स्वयं को हीन समझने लगते हैं, जिससे उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी और असंतोष की भावना पैदा होती है।
समाज में इस भेदभाव और असमानता को मिटाने के लिए जरूरी है कि *हम सभी विचारों का सम्मान करें, चाहे वह किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किए गए हों। व्यक्ति की सामाजिक स्थिति के बजाय उसके विचारों और कृत्यों को महत्व देना चाहिए।* इसके लिए हमें अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा और हर व्यक्ति को समान दृष्टि से देखना होगा। जब तक समाज में सभी व्यक्तियों को समान अवसर और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक सच्चे विकास की परिभाषा अधूरी ही रहेगी।
इसलिए, यह आवश्यक है कि हम अपनी सोच में बदलाव लाएं, *व्यक्ति को उसके विचारों और कृत्यों के आधार पर परखें, न कि उसकी सामाजिक स्थिति या पद के आधार पर।* तभी हम एक सच्चे लोकतांत्रिक और समतामूलक समाज की स्थापना कर सकेंगे, जहाँ हर विचार का महत्व होगा, चाहे वह किसी भी व्यक्ति द्वारा व्यक्त किया गया हो।
✍️ *आनन्द स्वरूप* ✍️