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*चमचागिरी: एक करियर विकल्प*

*चमचागिरी: एक करियर विकल्प* 🥄
चमचागिरी, मानव सभ्यता की एक प्राचीन कला है, जो बिना किसी प्रशिक्षण के हर दफ्तर, समाज, संगठन और राजनीति में सहजता से पनपती है। यह कला इतनी उच्च कोटि की है कि बड़े-बड़े विद्वान भी इसके सामने नतमस्तक हो जाते हैं। इसमें न मेहनत लगती है, न ही योग्यता, बस साहब की हां में हां, जीहुजूरी, सुर में सुर मिलाने का हुनर चाहिए। यह कला उन लोगों के लिए बनाई गई है, जिनका काम का बोझ उठाने का इरादा नहीं, बल्कि साहब के पांव दबाने का जुनून हो। चमचागिरी एक ऐसी कला है जो अयोग्य व्यक्ति को ऊंचे ओहदे पर पहुंचा देती है। इसका उदाहरण हम सबको सभी धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठनों में दिखाई पड़ जाती है। सभी संगठनों में भी आजकल व्यक्ति पुजा हावी हो गया है। किसी संगठन के सत्यानाश का एक कारण चमचागिरी है। यह चमचागिरी की कला गुटबाजी को खुब बढ़ावा देता है। चमचों का गैंग सभ्य, सज्जन पुरुषों के हर अच्छे कार्यों पर विघ्न, बाधा उत्पन्न करते हैं। सफलता लेनी है तो बस अपने उस व्यक्ति के आवभगत, पुजा में लगे रहिए। जिसका बहुत बड़ा दुष्परिणाम उन सभी संगठनों को मिलता है । कहावत भी है - बंदर के हाथ में उस्तरा पकड़ाना, अंधेर नगरी चौपट राजा। आजकल शासन प्रशासन, राजनीति में बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। मलाईदार पद, ठेकेदारी आदि के लिए केवल और केवल चमचागिरी ही मुख्य डिग्री हो गया है। किसी राज्य और देश का बुरा हाल हुआ है तो इसका एक बड़ा कारण चमचागिरी है। आज विभिन्न देश श्रीलंका, बंगलादेश, पाकिस्तान, युरोप के कई देशों में अस्थिरता का एक बड़ा कारण यही है। किसी देश का बंटाधार हुआ है तो इसका बहुत बड़ा कारण चमचागिरी भी है। 

चमचागिरी का एक अद्भुत पहलू यह है कि यह बिना किसी जाति, धर्म, या वर्ग के भेदभाव के फल-फूल सकती है। यहाँ योग्यता का कोई मोल नहीं, बस चापलूसी का चमत्कार चाहिए। आप कितना भी वफादार, समझदार बुद्धिमान या मेहनती क्यों न हों, चमचागिरी के महारथी आपको एक पल में झटके के साथ पीछे छोड़ सकते हैं। 
सच कहा जाए, तो आज के दौर में चमचागिरी एक करियर विकल्प है, जहाँ प्रमोशन के लिए सिर्फ साहब की चाय सही समय पर पहुँचाने और हर बैठक में "क्या बात है सर!" कहने की आवश्यकता होती है। इस कला में सिद्धहस्त लोग जीवन की सीढ़ियाँ ऐसे चढ़ते हैं जैसे वे कोई ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी हों—पर उनके पदक सिर्फ साहब की मुस्कान के बदले मिलते हैं । 
वर्तमान समय में हमें इस पर गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है। कैसे अयोग्य व्यक्ति के चुनाव से हम अपने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि विकास में अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं। स्वार्थ, लालच, मोह हमें अयोग्य व्यक्ति को आगे बढ़ाने में सहायता प्रदान करती है। इनसे हम सबको बचना चाहिए। किसी भी संगठन में चमचागिरी का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। आज कोई संगठन खड़ा हैं तो योग्य व्यक्तियों के कारण। सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर योग्य व्यक्ति को ही योग्य स्थान देना चाहिए।

मोहन लाल साहु समाजसेवी 
कोर्रा धमतरी