*डांडिया एक पारंपरिक, संस्कारिक, सांस्कृतिक नृत्य*
डांडिया एक पारंपरिक गुजराती लोक नृत्य है, जिसका मूल संस्कारिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह नृत्य विशेष रूप से नवरात्रि पर्व के दौरान देवी दुर्गा की पूजा के समय किया जाता है। डांडिया का प्राचीन स्वरूप, इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ, एक विशेष अनुशासन, ताल और सामूहिकता का प्रतीक रहा है।
### प्राचीन कालीन डांडिया संस्कृति:
1. **धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व**: प्राचीन काल में डांडिया का प्रदर्शन देवी दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक के रूप में किया जाता था। इसमें शारीरिक मुद्राएँ और ताल से देवी-शक्ति की स्तुति की जाती थी।
2. **ग्राम्य और पारिवारिक नृत्य**: यह नृत्य एक ग्राम्य और पारिवारिक नृत्य था, जिसमें ग्राम के सभी वर्गों के लोग एकत्रित होते थे। नृत्य का उद्देश्य सामूहिकता, सामंजस्य और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना था।
3. **पारंपरिक वेशभूषा और संगीत**: पुरुष और महिलाएँ पारंपरिक पोशाक, जैसे कच्छ की पोशाक, पहनकर इसमें भाग लेते थे। संगीत का स्वरूप भी पारंपरिक वाद्ययंत्रों, जैसे ढोल, ताशा और मंजीरे पर आधारित होता था।
4. **संस्कारी मुद्राएँ और शिष्टाचार**: प्राचीन डांडिया में नृत्य मुद्राएँ और लय बहुत संयमित और गरिमामय होती थीं। यह नृत्य स्त्री और पुरुष के बीच सम्मानजनक दूरी और शिष्टाचार का भी प्रतीक था।
### वर्तमान डांडिया अपसंस्कृति:
आज के समय में, विशेषकर शहरीकरण और आधुनिकरण के प्रभाव के कारण, डांडिया का स्वरूप काफी बदल गया है। इसे एक मनोरंजन और फैशन इवेंट के रूप में देखा जाने लगा है।
1. **व्यावसायीकरण और प्रदर्शन**: वर्तमान डांडिया इवेंट्स व्यावसायीकरण के कारण आकर्षण का केन्द्र बन चुके हैं। इसका आयोजन बड़े पैमाने पर होटलों, क्लबों और मैदानों में किया जाता है। इसे मनोरंजन और मुनाफे के रूप में देखा जाने लगा है।
2. **फैशनेबल वेशभूषा**: पारंपरिक परिधानों की जगह अब फैशनेबल और आधुनिक वस्त्रों ने ले ली है। इसमें रंगीन रोशनी, डिज़ाइनर ड्रेसेस और आधुनिक संगीत का भी समावेश हो गया है, जो इसकी पारंपरिकता को प्रभावित करता है।
3. **मूल उद्देश्य का ह्रास**: प्राचीन डांडिया का मुख्य उद्देश्य धार्मिकता और सामूहिकता था, जो अब ह्रास हो चुका है। वर्तमान में यह सिर्फ मौज-मस्ती और व्यक्तिगत दिखावे का मंच बनकर रह गया है।
4. **अशोभनीय मुद्राएँ**: आधुनिक डांडिया में नृत्य की मुद्राओं और ताल में भी बदलाव आया है। इसमें अक्सर पारंपरिक शिष्टाचार का अभाव देखा जाता है, जिससे इसकी गरिमा और संयमित स्वभाव को ठेस पहुँचती है।
5. **फ्यूजन संगीत**: अब डांडिया में पारंपरिक गुजराती लोक संगीत की बजाय बॉलीवुड और पश्चिमी संगीत का इस्तेमाल होता है, जिससे इसके मूल संगीत की पहचान खो रही है।
### निष्कर्ष:
प्राचीन काल में डांडिया का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत उच्च था, जो सामूहिकता और अनुशासन का प्रतीक था। लेकिन, आधुनिकता के प्रभाव में इसके स्वरूप और उद्देश्य में भारी परिवर्तन आ गया है, जिससे यह अपनी मौलिकता और गरिमा को कहीं न कहीं खोता जा रहा है। यदि इसके पारंपरिक स्वरूप को संरक्षित किया जाए और आधुनिकता के साथ संतुलन बनाकर रखा जाए, तो इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पुनः स्थापित किया जा सकता है।
*हमारे देश की हर राज्य और क्षेत्र की संस्कृति विशेष और अद्वितीय है। जबकि डांडिया जैसे अन्य सांस्कृतिक नृत्यों को अपनाने और उसमें भाग लेने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन हमें अपने छत्तीसगढ़ राज्य की संस्कृति, नृत्य और लोक कला को भी नहीं भूलना चाहिए। हमें अपने राज्य के पारंपरिक संस्कृति को संरक्षित करने, प्रचारित करने और अगली पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराने की आवश्यकता है, ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर सदैव जीवित और प्रासंगिक बनी रहे।*
आनंद स्वरूप मेश्राम संबलपुर
विश्व हिन्दू परिषद जिला उपाध्यक्ष धमतरी