प्रकाश बैस का पुनः भाजपा जिलाध्यक्ष बनना, कार्यकर्ताओ के भरोसे के विपरीत
धमतरी-(रिपोर्टर वेणु साहू) - नाराजगी,अंतर कलह के चलते और नियमों को सामने रख भाजपा ने पुनः प्रकाश बैश को जिलाध्यक्ष बना दिया गया है,
पहले ही भयंकर गुटबाजी से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी फिर से नवनियुक्त जिलाध्यक्ष प्रकाश बैस पर दांव लगा दिया, जिसे लेकर शहर एवं ग्रामीण क्षेत्र मे चर्चाओ का बाजार गर्म है, कार्यकर्ताओ की माने तो शहर से ही जिले का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था जिससे आने वाले निगम चुनाव मे भरपूर फायदा मिलता, जिलाध्यक्ष की रेस मे सबसे पहले तेजतर्रार पूर्व विधायक प्रदेश प्रवक्ता रंजना साहू, युवा नेता महेन्द्र पंडित व पूर्व महामंत्री कविंद्र जैन के नामों को लेकर किसी भी प्रकार का विवाद नहीं था शहर व गांव के कार्यकर्त्ता सहज से इनमे से किसी को भी आसानी से स्वीकार कर लेते,
कुछ दिन पूर्व हरदिहा भवन मे जिलाध्यक्ष की चुनाव की तैयारी थे लेकिन उन्हें किन्ही कारण वश टालना पड़ा जिसके बाद आज बंद लिफाफे मे प्रकाश बैस का जिलाध्यक्ष के लिए खोला गया,कार्यकर्ताओ ने कहा की ज़ब हाई कमान को 1 साल कार्यकाल वाले जिलाध्यक्ष नहीं बदलना था तो चुनाव की बाते सामने नहीं आने चाहिए थी न ही भाजपा नेताओं को दावेदारी कर नाम भेजना चाहिए था,
दबी जबान कार्यकर्ता जिलाअध्यक्ष को कोई चमत्कारिक चेहरा नहीं मानते, चर्चा यह भी है की प्रदेश के एक नेता धमतरी मे अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए इस तरह की नियुक्ति करवा रहे है
वही तेजतर्रार भाजपा नेत्री प्रदेश प्रवक्ता रंजना साहू का नाम सबसे टॉप मे रहने के बाद भी उनका जिलाध्यक्ष नहीं बनना एक कद्दावर नेता का जिले व प्रदेश पार्टी मे प्रभाव कम होना दिखाई पड़ रहा है
विधानसभा चुनावों में जिले की तीन में से दो सीटें हारने के बाद आलाकमान ने तत्कालीन जिलाध्यक्ष शशि पवार की जगह जिले की कमान जिला महामंत्री प्रकाश बैस के हाथों में सौंपी थी। तभी से कार्यकर्ताओं में हताशा का भाव संचारित हो गया था। ये बात सुनने में आने लगी थी कि जो मंडल अध्यक्ष और जिला महामंत्री जैसे जिम्मेदार पदों पर रहकर अपनी नगरी विधानसभा नहीं जिता पाया वो जिले का दायित्व कैसे सम्हालेगा ? आलाकमान की समझाइश पर पार्टीजन उनके कामकाज में सुधार की उम्मीद लगा बैठे थे, पुनः उनका जिलाध्यक्ष बनना कार्यकर्ताओ का मनोबल अब टूटती नजर आ रही है। बीजेपी के जिला कार्यालय में वो नियमित रूप से नहीं बैठते जिससे आम कार्यकर्ताओं से उनका जीवंत और सतत संपर्क नहीं हो रहा है। यही नहीं जिले के प्रभारी मंत्री के कुछ प्रवासों के दौरान उनकी अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी हुई है।
कहां उनसे जिलेभर के कार्यकर्ताओं का रहनुमा बनने की आस थी और वो महज नगरी के जिलाध्यक्ष बनकर रह गए है,उन्होंने अपने क्रियाकलापों से अबतक ना तो प्रेरक व्यक्तित्व की कोई झलक दी है ना ही वो सर्वमान्य और समावेशी नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित हो पाए हैं। जिसके बाद भी आज उन्हें पुनः जिलाध्यक्ष बना दिया गया है,
कुल मिलाकर आम कार्यकर्ताओं के मन में अब ये धारणा घर करने लगी है कि कहीं जिलाध्यक्ष की अपरिपक्व और अक्षम कार्यशैली पार्टी के हितों पर भारी ना पड़ जाए।
आगामी स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव चुनावों के पहले पार्टी का यह निर्णय कार्यकर्ताओ का मनोबल टूटने से पार्टी की संभावनाओं पर ग्रहण लगने से इंकार नहीं किया जा सकता।